दिली की औरतें (दिल्ली बेल्ली)

बात लगभग 2 साल पहले की है मैं दिल्ली के एक कॉलेज से स्नातकी कर रहा था, तो मैंने दिल्ली में ही उत्तम नगर में एक घर में एक कमरा किराये पर ले लिया था।
हमारे मकान मालिक काफी पैसे वाले है उनका ट्रांसपोर्ट का बिज़नस है, उनके घर में उनकी पत्नी सुधा जिसकी उम्र लगभग 38 साल, रंग गोरा, स्तन 36, कमर 25, नितम्ब 38 के होंगे। वो काफी बनठन कर रहने वाली औरत है, काफी सेक्सी बनी रहती है, वो पार्टियों और सहेलियों के साथ घूमने फिरने की बहुत शौकीन है, उनके मस्त उभरे हुए नितम्बों को देख कर किसी का भी मन मचल जाए।
उनकी एक बेटी भी है शाम्भवी नाम है उसका, जिसकी उम्र लगभग 21 वर्ष होगी, देखने में बिल्कुल कहानियों की मल्लिका, या यूँ कह लीजिये किसी पुराने राज घराने की राजकुमारी लगती है।
अगर इन्द्र की नजर भी उस पर पड़ जाए तो वो उसको पाने के लिए अपना आसन त्याग दे ! क़यामत लगती है, दूध सा सफ़ेद चमकता हुआ रंग, एकदम खड़े नुकीले स्तन, पतली कमर, गोल गोल उभार लिए हुए मस्त चूतड़। मेरा तो उसे देखते ही पानी निकाल गया था।
मैं नया नया दिल्ली गया था तो जाहिर है वहाँ के बारे में ज्यादा जानता नहीं था, मैं भी दिन भर कॉलेज में रहता था, शाम को कमरे पर आकर रात में खाना खाने होटल जाना पड़ता था जो वहाँ से काफी दूर था।
मैं शाम को शाम्भवी की एक झलक पाने के लिए घंटों बालकनी में बैठा रहता था। दिन तो किसी तरह कट जाता था पर रात तो करवटें बदलते और उसके बारे में सोचते हुए ही बीतती थी।
कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चला। मैं थोड़ा शर्मीला किस्म का हूँ, इसलिए कुछ बोल नहीं पाता हूँ।
अंकल आंटी से भी महीने में एक या दो बार ही बात होती थी, जब कोई काम पड़ता था। शाम्भवी को याद कर कर के दिन कट रहे थे, पढाई में मन नहीं लगता था, किताबों में उसकी नंगी तस्वीर नजर आती थी, सच कहूँ दोस्तो, ऐसे मौके पर अपने पर गुस्सा भी आता है और कुछ करते हुए डर भी लगता है, पर क्या करूँ, कुछ कर भी नहीं सकता था, डरता था, अनजान शहर में हूँ, कहीं कोई बात न हो जाये, और ऊपर वाले के भरोसे सब कुछ छोड़ दिया।
क्यूंकि हम सब जानते हैं ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं।
सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, जाड़े का मौसम आ गया इसलिए मैं होटल पर खाना न खाकर खाना बनाने लगा, ठण्ड काफी होती है दिल्ली में, यह सब जानते हैं।
एक दिन मैं कॉलेज से लौट के घर आया, काफी रात हो गई थी, अंकल को देर रात में आना था, मैं अपने कमरे में बैठा शाम्भवी के ख्यालों में खोया हुआ था कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई, मैंने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने आंटी खड़ी थी- बेटा, आज इतनी देर क्यों कैसे हो गई?
"आंटी, आज कॉलेज में कुछ काम पड़ गया था।"
"तो क्या अब इतनी रात को खाना बनाओगे?"
मैं सोच में पड़ गया...
"क्या सोच रहे हो?"
मैं तो आंटी की मस्त चूचियाँ ही देखे जा रहा था, मेरा लंड पजामे के अन्दर थिरकने लगा था, पजामा तम्बू बन चुका था...
आंटी की नजर शायद उस पर पड़ गई थी ..
उन्होंने मुझसे कहा- आज खाना हमारे यहाँ खा लो।
मैंने हाँ में सर हिला दिया- जी अच्छा !
आंटी दरवाजा बंद करके चली गई।
मैं जल्दी जल्दी तैयार होकर आंटी के कमरे में पहुँच कर सोफे पर बैठ गया, तभी शाम्भवी ने पानी लाकर मेरे सामने मेज पर रख दिया। मैं तो खाना-वाना सब भूल कर बस उसके स्तनों का दूर से ही दर्शन कर रहा था, फिर वो पलटी और जाने लगी।
कसम से क्या बताऊँ, मन तो कर रहा था कि पीछे से जाकर पकड़ कर अपना लंड उसकी गांड में पेल दूँ।
तभी आंटी खाना लेकर आ गई और मेरे सामने रख दिया।
मैंने खाना शुरु किया, आंटी मेरे सामने ही सोफे पर बैठ गई, उन्होंने एक झीनी सी नाइटी पहनी थी, क्या क़यामत लग रही थी, नाइटी उनके घुटनों तक ही थी उनकी गोरी गोरी टांगें देख कर मेरे मन में तूफ़ान सा उठने लगा, मैंने पानी का ग्लास उठाया और एक ही बार में पूरा पानी पी गया।
आंटी के गोरे गोरे गोलगोल मम्मे साफ साफ नाइटी से झलक रहे थे, शायद आंटी भी मेरे मनोभावों को समझ रही थी

CNTD.....

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