Thursday, June 25, 2015

चौधराइन की चुदाई part 7

नीचे अन्धेरा होने का फायदा उठाते हुए , पंडिताईन ने एक हाथ से अपना चुत की दरार को पेटीकोट के उपर से हल्के से दबाया ।तभी माया देवी ने उपर से कहा - “ जरा इधर दिखा …। ” पंडिताईन ने वैसा ही किया । पर बार-बार वो मौका देख टार्चकी रोशनी को उनकी टांगो के बीच में फेंक देती थी । कुछ समय बाद माया देवी बोली- “ और तो कोई पका आम नहीं दिख रहा,…चल मैं नीचे आ जाती हुं, वैसे भी दो आम तो मिल ही गये…। तु खाली इधर-उधर लाईट दिखा रहा है, ध्यान से मेरे पैरों के पास लाईट दिखा ।" -कहते हुए नीचे उतरने लगी । पंडिताईन को अब पूरा मौका मिल गया, ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर लाईट दिखाने लगी । नीचे उतरती चौधराइन के पेटिकोट के अन्दर रोशनी फेंकते हुए , मस्त चौधराइन माँसल, चिकनी जांघो को अब वो आराम से देख सकती थी । क्योंकि चौधराइन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था, हालांकि उनकी लंड और झाँटों का दिखना अब बन्द हो गया था, मगर चौधराइन का मुंह पेड़ की तरफ होने के कारण पीछे से उसके मोटे-मोटे चूतड़ों दिख रहे थे । उतरने में दिक्कत न हो इसीलिए चौधराइन अपनी पेटीकोट को पुरी समेट कर कमर में खोस लिया था, जिससे पंडिताईन को उनकी कमर से निचे उभरी हुई भारी चौडी गांड रोशनी में साफ दिखाई दे रहा था । चौधराइन के निचे उतरते समय भी अपनी आंखो से उनकी गदराई गोरी चूतड़ों के दरार से उनकी लटकती मूषल लंड और अंडकोष की थिरक को देख पंडिताईन की चुत में खुजली होने लगा था । एक हाथ से चुत को कस कर दबाते हुए, पंडिताईन मन ही मन बोली- “हाय ऐसे ही पेड़ पर चढी रह उफफ्फ्…क्या चूतड़ हैं ?…किसी ने आज तक नहीं रगड़ा होगा एकदम अछूते चूतड़ों होंगे…। हाय मालकीन चुत ले कर खडी हूँ, जल्दी से नीचे उतर के इस पर अपना लंड पेल दो !” ये सोचने भर से पंडिताईन की चुत पनिया गयी थी । चौधराईन के नीचे उतरते ही बारिश की मोटी बुंदे गिरने लगी । पंडिताईन हडबड़ाती हुई बोली - “चलिए जल्दी,,,,,भीग जायेंगे.......।”

दोनों तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पडे । अन्दर पहुंचते पहुंचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये । माया देवी का ब्लाउज और पंडिताईन की पेटीकोट दोनों पतले कपड़ों के थे । भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे, जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो । तभी पंडिताईन उन्हें तौलिया देती हुई धीरे से बोली - “तौलिया लीजिए मालकीन, और जा कर मुंह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ जाईए ।" माया देवी चुप-चाप बाथरुम में घुस गयी और दरवाजा उसने खुला छोड़ दी थी । फिर कमोड पर खडी होकर पुरी पेटीकोट कमर तक समेट ली और लंड हाथ में थामें चर-चर मुतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आयी, तो देखा की पंडिताईन बिस्तर पर बैठ अपने घुटनों को मोड़ बैठी थी । माया देवी ने हाथ पैर पोंछे और बिस्तर पर बैठती हुई पुछी - “क्या हुआ…राजेश्वरी..... ?” पंडिताईन चुप रही, माया देवी की समझ में आ गयी, फिर उसने आगे बढ़ अपनी एक हाथ पंडिताईन के पेट पर रख दिया और उसने छाती पर झुक कर अपनी लम्बी गरम जुबान बाहर निकाल कर, चूचियों को चाट लिया । इतनी देर से गीला ब्लाउज पहन ने के कारण पंडिताईन की चूचियाँ एकदम ठंडी हो चुकी थी । ठंडी चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर चौधराईन की गरम जीभ जब सरसराती हुई धीरे से चली, तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। कसमसाती हुई अपने दोनों हाथों से माया देवी की स्तनों को जोर से मसलते हुए बोली- “हाय... तो चूसूँ मालकिन !!?” चूची चूसने की इस खुल्लम-खुल्ला आमन्त्रण ने चौधराईन की लन्ड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी और माया देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली- “ ले चू,,,,,,स…बहुत मीठा है…।" राजेश्वरी ने अपनी बांई हथेली में उसकी एक चूची को कस लिया और जोर से दबा दिया, माया देवी के मुंह से सिसकारी निकल गई- “आह....चूसने के लिये बोला तो… !” “दबा के देखने तो दो…चूसने लायक पके है,,,,, या,,,????”, 

गरदन नीचे झुकाती हुई पंडिताईन ने अपना मुंह खोल भीगे ब्लाउज के ऊपर से चूची को निप्पल सहित अपने मुंह में भर लिया। हल्का सा दांत चुभाते हुए, इतनी जोर से चुसा की माया देवी के मुंह से आह भरी सिसकारी निकल गई। उसने एक चूची को अपने हाथ से दबाते हुए, दूसरी चूची पर मुंह मार मार के चूसने, चुमने लगी । माया देवी की मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, उसने अपनी जांघो को भींचते हुए , राजेश्वरी की सर को अपनी चूचियों पर भींच लिया । गीले ब्लाउज के ऊपर से निप्पल एकदम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होठों के बीच दबा कर खींचते हुए, जब राजेश्वरी ने चुसी तो माया देवी छटपटा गई । राजेश्वर की सिर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सिसयायी- “इससस्स्स्,,,,,, उफफफ्फ्,,,,धीरे… आराम से, आम चु…स…।”

थोड़ी ही देर में चौधराईन की उत्तेजना काबू के बाहर होने लगी और व राजेश्वरी की गदरायी जिस्म पर जॅहा तॅहा मुंह मारने लगी । उसने चौधराईन के बगल में लेटते हुए उन्हें अपनी तरफ घुमा लिया, और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भर, नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए, अपनी बाहों के घेरे में कस जोर से चिपका लिया । दोनों के चुचीयां वापस मे रगड खा रहे थे । करीब पांच मिनट तक दोनों कामातुर महिला एक दूसरे से चिपके हुए, एक दूसरे के मुंह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटी करते रहे । जब दोनों अलग हुए तो हांफ रहे थे । दोनों अब बेशरम हो चुके थे । चौधराईन अपना एक हाथ चूचियों पर से हटा, नीचे जांघो पर ले गया और टटोलते हुए, अपने हाथ को जांघो के बीच डाल दिया । चूत पर पेटिकोट के ऊपर से हाथ लगते ही राजेश्वरी ने अपनी जांघो को भींचा, तो चौधराईन ने जबरदस्ती अपनी पूरी हथेली जांघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसलते हुए बोली- “अब तो अपना बिल दिखा ना,,,,,!!!” पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई पंडिताईन, उसने जोश में आ चौधराईन की गाल को अपने मुँह में भर लिया, और अपने हाथ को सरका, कमर के पास ले जाती पेटीकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की । हाथ नहीं घुसा, मगर चौधराईन की खड़े लण्ड पर हाथ पड़ते ही राजेश्वरी का बदन सिहर गया । गरम लोहे की राड की तरह तपते हुए लण्ड को मुठ्ठी में कसते ही, लगा जैसे चूत पनियाने लगी हो । मुँह से निकला – "हाय मालकीन, कितना बडा है...... !” चौधराईन की लण्ड को हथेली में कस कर, जकड़ मरोड़ती हुई बोली- “ हाय मालकीन..जल्दी करो ! अब रहा नहीं जा रहा…।" झट से बैठते हुए चौधराईन पेटिकोट के नाड़े को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोली- “भगवान बेला का भला करे जिसने तेरी बुर की इतनी तारीफ़ की कि मैं ललचा गई।" कहती हुई चौधराइन अपने भारी भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़ उठा, पेटिकोट को चूतड़ों से सरका और शानदार रेशमी मांसल जांघों से नीचे से ठेल निकाल दिया । इस काम में पंडिताईन ने भी उसकी मदद की और सरसराते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच एक तरफ फेंकी, तो कमरे की रोशनी में चौधराइन की दस इंच का तमतमाता हुआ लण्ड देख पंडिताईन को झुरझुरी आ गई । उठ कर बैठते हुए, हाथ बढ़ा उनकी लण्ड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलु जैसे लाल सुपाड़े को देखती बोली- 

“हाय,,,,,,,बेला ठीक बोलती थी आपकी लन्ड तो वाकई बहुत बड़ा,,,,,है…मेरी…तो फ़ाड़ ही देगा........।" चौधराइन लेट गई, और अपनी दोनो टांगो को घुटनो के पास से मोड़ कर फैला दिया । दोनों अघेड औरतें अब जबर्दस्त उत्तेजना में थे । दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाह रहा था । कमरे की ट्यूबलाइट की रोशनी में चौधराइन के भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़, शानदार चमचमाती रेशमी मांसल जांघों के बिच आधे तनी मूषल लन्ड दख पंडिताईन की आंखें एक बार तो चौंधियागयी .....फ़िर फ़टी की फ़टी रह गईं। राजेश्वरी ने चौधराईन की चमचमाती जांघो को अपने हाथ से पकड़, थोड़ा और फैलायी और उसके ऊपर हपक के मुँह मारकर चुमते हुए, फ़िर उसकी झाँटदार लन्ड के ऊपर एक जोरदार चुम्मा लिया, और लन्ड की चमडी को निचे सरका कर लाल सुपाडी की छेद में जीभ चलाते हुए, अंडकोष को झाँटों सहित मुठ्ठी में भर कर खींचा, तो चौधराइन लहरा गई और सिसयाती हुई बोली- “इसस्स्,,,!! क्या कर रही है…???” राजेश्वरी ने चौधराईन की लन्ड पकड लिया । अब वो उनकी लन्ड से खेल रही थी । चौधराईन की लन्ड फ़ूल कर मोटा और कडक हो गया था । उसने सुपाडे की चमडी खींच कर उसे खोल दिया । अब वो उसे उपर नीचे कर रही थी । चौधराईन को मीठी मीठी तेज गुदगुदी होने लगी । चौधराईन उसका हाथ पकड़ना चाहा तो उसने प्यार से उनकी हाथ हटा दिया और उनकी लन्ड को पकड़ कर मुठ मारने लगी । चौधराईन की सारे शरीर में सनसनाहट होने लगी, व अपनी चुचीयों को मसलते हुए बोली- "पंडिताईन…… हाय……… मजा आ रहा है … और मुठ मार …… हाय……आज तो बस ऐसे ही मेरा रस निकाल दे……।"

पंडिताईन ने माया देवी की लन्ड को मुठ मारते मारते अपने मुंह में सुपाडा ले लिया । उत्तेजना में चौधराईन को सब अच्छा लग रहा था। उसके हाथ चौधराईन की लन्ड पर और तेज चलने लगे… मुंह से लन्ड चूसने की मधुर आवाजें आ रही थी, मुठ मारती जा रही थी… । तभी पंडिताईन लन्ड मुंह निकाल फिर माया देवी के पैरो के बीच में आ गई । चौधराईन चित लेटी थी । राजेश्वरी के खुले बाल चौधराईन की पेट और जाँघों पर गुदगुदी कर रहे थे और व चौधराईन की लंड को गप्प से पूरा अन्दर लेकर चूसने लगी । मस्ती में चौधराईन अपनी भारी चुतड उछाल रही थी । कभी राजेश्वरी चौधराईन की लंड को पूरा बाहर निकाल देती और उस पर जीभ फिराती कभी पूरा मुंह में ले लेती । कभी वो सुपाड़े को दांतों से दबाती और फिर उसे चूसने लगती । कभी व चौधराईन की लंड को अपने मुंह से बाहर निकाल कर उनकी अन्डकोशों को अपने मुंह में ले लेती और उन्हें चूम लेती और फिर दोनों अण्डों को पूरा मुंह में लेकर चूसने लगती । साथ में चौधराईन की लंड पर हाथ ऊपर नीचे फिराती । चौधराईन की आनंद का पारावार ही नहीं था । पता नहीं इस चूसा चुसाई में कितना समय बीत गया। माया देवी भला कितनी देर ठहरती । उन्होंने पंडिताईन को कहा कि मैं अब जाने वाली हूँ तो वो एक ओर हट गई । चौधराईन कुछ समझी नहीं । पंडिताईन झट से चित लेट गई और माया देवी की लंड को अपने मुंह की ओर खींचने लगी । चौधराईन उकडू होकर उसकी मुंह के ऊपर आ गयी । चौधराईन की भारी नितम्ब अब राजेश्वरी की स्तन पर थे और उसकी नाजुक उरोजों को दबा रहे थे । चौधराईन राजेश्वरी के बालों को पकड़ लिया और और उसके सिर को दबाते हुए अपना लंड उसके मुंह में ठेलने की कोशिश करने लगी । चौधराईन की लंड उसके गले तक जा पंहुचा था । उसने चौधराईन की लंड को अपने मुंह में समायोजित कर कर लिया और खूब जोर-जोर से उनकी आधे से अधिक लंड को अपने मुंह में भर कर अन्डकोशों की गोलियों के साथ खेलते हुए चूसने लगी। पंडिताईन कभी उन्हें सहलाती और कभी जोर से भींच देती। चौधराईन की मुंह से सीत्कार निकलने लगी थी- "ऊईइ … मेरी जा… आ… न… मेरी रानी…. ईईइ.... और जोर से चूसो और जोर से ओईइ….. या आ …… ।" और लन्ड को पंडिताईन के मुँह में लगातार पेल रही थी । जब उन्हें लगी कि ऐसे ही पेलती रही तो उनकी पानी निकल जायेगी । झटके से चौधराईन अपनी लन्ड बाहर निकल राजेश्वरी को बिस्तर पे चित लिटा दिया और उसकी मोटी जांघों के बीच बैठा कर पंडिताईन कि दोनों टाँगों को थोड़ा फैला दिया और अपनी जीभ दे दी उसकी चूत में । अपनी जीभ से उसकी चूत के दाने को रगड़ने लगी । चूत के दाने पर चौधराईन कि जीभ के लगते ही सिसकारियों कि बाढ़ आई । चौधराईन कि जीभ उसकी चूत में जाकर उसको पागल कर दी । "मालकीन....ओह्ह्ह . उफ्फ्फ्फ्फ्फ....चाटो चूसो.. मेरी चूत....चाटो इसे अपनी जीभ से.....अह्ह्ह . उफ्फ्फ . रगड़ों . मेरे रज. चूसो उफ्फूओ आह हाइ.... हाअन येआ... येअह..... ये...... अह चाट जाओ मुझे ।"

ऐसी सिसकारीयां लेती हुई पंडिताईन अपनी चूत को ठेलते हुए चौधराईन को जमीन पर सुला दिया और उसके मुँह पर अपनी चूत रगड़ने लगी । अपनी चूत को जोर जोर से चौधराईन की मुँह पर रगड़ रगड़ कर बोली- "खा जाओ मेरी चूत को आअह्ह्ह्ह्ह ....आआअह्ह्ह्ह .....पीईईई...... जाआआअओ.... मेरी चू...ऊ....त का....अ....रस ।" लेकिन चौधराईन ने उसकी चूत को चूसना चालू रख । पंडिताईन ने बड़ी अदा से अपने दोनों घुटने चौधराईन की सिर के दोनों ओर कर दिए और अपना मुंह उनकी लंड के ठीक ऊपर कर लिया । चौधराईन की मोटी-मोटी संगेमरमर जैसी कसी हुई जाँघों को कस कर पकड़ लिया और नीचे से ऊपर अपनी जीभ फिराई गांड के सुनहरे छेद तक और फिर ऊपर से नीचे तक। चौधराईन की लन्ड तो किसी चाबी वाले खिलौने की तरह उछल रहा था । उसने तो प्री-कम के टुपके छोड़ने शुरू कर दिए थे । पंडिताईन ने पहले चौधराईन की लंड को अपने हाथ से पकड़ा और फिर अदा से अपने सिर के बालों को एक झटका दिया । बाल एक ओर हो गए तो उन्होंने सुपाड़े पर आये प्री- कम पर अपनी जीभ टिकाई चाट लिया । फिर अपनी जीभ सुपाड़े पर फिराई लंड के ऊपर से नीचे तक । फिर जब उसने चौधराईन की अन्डकोषों को चाटा तो चौधराईन भी उनकी गांड के सुनहरे छेद पर अपनी जीभ की नोक लगा दी । अब चौधराईन की जीभ राजेश्वरी की चूत को कुरेदने लगी और उसकी मुख से आनन्द भरी सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। पंडिताईन की गाण्ड की छेद माया देवी की आँखों के सामने था । गांड का छेद तो कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। चौधराईन ने गांड को थूक से उसे तर कर दिया था। उन्होने अपनी एक अंगूठे पर थूक लगा कर गच्च से पंडिताईन की गांड के छेद में डाल दिया । "ऊईइ माँ….. " कहते हुए पंडिताईन ने माया देवी की दोनों अन्डकोशों को अपने मुंह में भर लिया । फिर उन्होंने उन गोलियों को मुंह के अन्दर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया। माया देवी की लंड का बुरा हाल था उनका का सारा शरीर ही रोमांच से कांपने लगा था । पंडिताईन ने माया दोवी की लंड को मुंह में भर लिया और लोलीपोप की तरह चूसने लगी । चौधराईन भी अपनी जीभ से उनकी चूत की फांकों को चौड़ा किया और जीभ फिराई । पंडिताईन की हालत तो पहले से ही ख़राब थी । उसने कहा- "ओह मालकीन…. जोर से चूसो… ओह… मैं तो गई। ऊईई… माँ …………।" अब चूत कि चुसाई पंडिताईन को और सहन नहीं हो रही थी तो बोली- "क्यों तड़पा रहे हो मालकीन चलो अब चोदो मुझे । अपने लन्ड को मेरी चूत में डाल कर जोर-जोर के धक्के मारो....अब दाल भी दो ।" चौधराईन भी अब खुद चोदने के लिए बेसब्र हो चुकी थी । लन्ड में जीभ चलने पर मजा तो आया था मगर लण्ड, बुर में लेने की जल्दी थी। जल्दी से राजेश्वरी के सिर को पीछे धकेला और फिर राजेश्वरी की पनियायी चूत की दरार पर उँगली चला उसका पानी लेकर, चौधराईन अपनी लण्ड की चमड़ी खींच, सुपाड़े की मुन्डी पर लगा कर चमचमाते सुपाड़े को राजेश्वरी को दिखाती बोली-“देख मेरी लन्ड..... तेरी छेद पर...।" “हां…जल्दी से…। मेरे छेद में…।“ चौधराईन अपनी मूषल लण्ड के सुपाड़े को उसकी चूत के छेद पर लगा, पूरी दरार पर ऊपर से नीचे तक चला, बुर के होठों पर लण्ड रगड़ते हुए बोली-“हाय,,, पेल दुं,,,,पूरा…???” “हां,,,!! मालकीन…चोद बन जाओ…” “फ़ड़वाये,,गी..???” हाय,,,फ़ाड़ दूँ” “बकचोदी छोड़,,,,, फ़ड़वाने के,,,,,लिये तो,,,,,खोल के,,,,नीचे लेटी हूँ…!! जल्दी कर......", वासना के अतिरेक से कांपती झुंझुलाहट से भरी आवाज में राजेश्वरी बोली । लण्ड के लाल सुपाड़े को चूत के गुलाबी झांठदार छेद पर लगा, चौधराईन ने उभरी चौडी चुतड उछाल के एक धक्का मारी । सुपाड़ा सहित चार इंच लण्ड चूत के कसमसाते छेद की दिवारों को कुचलता हुआ घुस गया । हाथ आगे बढ़ा, चौधराईन के सिर के बालो में हाथ फेरती हुई, उसको अपने से चिपका, भराई आवाज में बोली- “हाय,,,, पूरा…डाल दो…“हाय,,,,, ,,,!!! …फ़ाड़…! मेरी मालकीन.... …शाबाश।" चौधराईन ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर खींचते हुए, फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकाल फुर से गांड उछाल धक्का मारी । इस बार का धक्का जोरदार था । पंडिताईन की चूतड़ों फट गई ।

to be continued..................

No comments:

Post a Comment