पंडिताईन की चूतड़ों फट गई ।
“उईईई आआ,,,,,, शाबाश फ़ाड़ दी,,,,,, ,, आह…।” करते हुए, अपने हाथों के नाखून चौधराईन की पीठ में गड़ा दिये। “बहुत,,,,, टाईट…है…तेरा,,,,छेद…” चूत के पानी में फिसलता हुआ, चौधराईन की पूरी लण्ड उसकी चूत की जड़ तक उतरता चला गया। “बहुत बड़ा…है,,,,आपकी,,,,लन्ड…उफफफ्…। मेरे,,,,,,चुची चूसते हुए,,,,,चोदो ....शाबाश ।” चौधराईन ने एक चूची को अपनी मुठ्ठी में जकड़ मसलते हुए, दूसरी चूची पर मुंह लगा कर चूसते हुए, धीरे-धीरे एक- चौथाई लण्ड खींच कर धक्के लगाती पुछी- “पेलवाती,,,, नही… थी…???” “नही,,,। किस से पेलवाती,,,,,,?” “क्यों,,,,?…पंडित…!!!।” “उसका मूड…बहुत कम… कभी-कभी ही बनता है।” “दूसरा…कोई…” ये सुनकर पंडिताईन ताव में आकर झल्लाते हुए चार-पांच तगडे धक्के नीचे से लगा दी । तगडे धक्को ने चौधराइन को पूरा हिला दिया। चूचियाँ थिरक उठीं । मोटी जांघो में दलकन पैदा हो गई । लन्ड में थोड़ा दर्द हुआ, मगर मजा भी आया, क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और लण्ड गच-गच फिसलता हुआ अन्दर- बाहर हुआ था । अपने पैरों को चौधराईन की उभरी हुई भारी चुतडों के उपर कमर से लपेट उनको भींचती सिसयाती हुई बोली- “उफफफ्,,,,,,,, सीईई दुखा दिया आरम,,....।” चौधराईन कुछ नही बोली । लण्ड अब चुंकी आराम से फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था, इसलिये व पंडिताईन कि टाईट, गद्देदार, रसिली चूत का रस अपने लण्ड की पाईप से चूसते हुए, गचा-गच धक्केलगा रही थी । राजेश्वरी को भी अब पूरा मजा आ रहा था । चौधराईन की तग़डी लण्ड सीधा उसकी चूत के अखिरी किनारे तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था । धीरे-धीरे चूतड़ों उंचकाते हुए सिसयाती हुई बोली- “बोलोना,,,,,तो, जो बोल…रही…” “मैं तो…बोल रही थी,,,,,, की अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही… करवाया …नही तो,,,,,,,,मुझे…तेरी टाईट…छेद की जगह…ढीला…छेद में लन्ड डालनी पडती ।”- राजेश्वरी की चुत पर धक्के तेज करती हुई चौधराईन बोली। “हाय…आपको,,,,छेद की…पड़ी है…इस बात की नही, की मैं दूसरे आदमी .....।" “हाय,,,, अब…आदमीयों को छोड़…अब तो बस तेरी… ही…सीईईइ.....उफफ्… बहुत मजेदार छेद है…”, गपा-गप लण्ड पेलता हुई चौधराईन सिसयाते हुई बोली । अब चौधराईन की लण्ड राजेश्वरी की बुर की दिवारों को बुरी तरह से कुचलता हुआ, अन्दर घुसते समय चूत के धधकते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था, और फिर जब बाहर निकलता था तो चूत के मोटे होठ और पुत्तियां अपने आप करीब आ छेद को फिर से छोटा बना देती थी । मोटी जाँघों और बड़े होठों वाली, फ़ूली पावरोटी सी गुदाज चूत होने का यही फायदा था । हंमेशा गद्देदार और टाईट रहती थी, ये बात चौधराईन को भली-भांती मालुम थी और खास इसी वजह से ही तो उनकी नजर पंडिताईन की भारी गठीले वदन पर थी । राजेश्वरी ने भी चौधराईन की उरोजों को मसलते हुए निपलों को मुंह में भर चुसने लगी । राजेश्वरी के रसीले होठों को चूसते हुए, नीचे के होठों में लण्ड धंसाते हुए चौधराईन तेजी से अपनी उभरी चूतड़ों उछाल कर उसके ऊपर कुद रही थी । “हाय,,,मालकीन... आपकी लन्ड भी…!! बहुत मजेदार…है, मैंने आजतक इतना लम्बा..और मोटा लन्ड …सीसीसीईईईईईईई…हाय डालती रहो…। ऐसे ही…उफफ्…पहले दर्द किया,,,,,मगर…अब…। आराम से…। हाय…। अब फ़ाड़ दो…। सीईईईई…पूरा डाल… कर…। हायमादर,,,,,चोद…बहुत पानी फेंक रही… है मेरी …चु…त...।” नीचे से चूतड़ों उछालती, चौधराईन की चौडी उभरी गांड को दोनो हाथों से पकड़ अपनी चूत के ऊपर दबाती, गप गप लण्ड खा रही थी राजेश्वरी । कमरे में बारिश की आवाज के साथ पंडिपाईन की चूत की पानी में फच-फच करते हुए चौधराईन की लण्ड के अन्दर-बाहर होने की आवाज भी गुंज रही थी । इस सुहाने मौसम में खलिहान के विराने में दोनो चोदाई का मजा लूट रहे थे ।
कहाँ चौधराईन अपनी गुप्त रहस्य पकड़े जाने पर अफसोस मना रही थी वहीं अभी खुशी से अपनी भारी चूतड़ों कुदाते हुए, अपनी पंडिताईन की टाईट पावरोटी जैसी फुली चूत में लण्ड पेल रही थी । उधर पंडिताईन जो सोच रही थी की मालकीन आखिर मर्द बनी कैसी ! ईतना ब़ा लन्ड ... अब नंगी अपने चौधराईन के नीचे लेट कर, उनकी तीन इंच मोटे और दस इंच लम्बे लण्ड को कच-कच खाते हुए खुशियां मना रही थी । “हाय,,,, बहुत…। मजेदार है, तेरी चुची..... तेरी ...छेद…उफफ्…हाय,,,, अब तो…हाय,,,, मजा आ रहा है, इस चौधराईन की लन्ड बुर में घुसवाने में ???…। सीएएएएएए…। हाय, पहले ही बता दिया होता …तेरी सिकुड़ी चूत फ़ाड़ के भोसड़ा बना देती …सीईईईई ले अपनी मालकीन की…। लण्ड.... हाय…बहुत मजा,, हाय,,…तूने तो खेल-खेल कर इतना… तड़पा दिया है…अब बरदाश्त नहीं हो रहा…मेरी तो निकल जायेगी ……सीईईईईई… तेरी … चु…तमें,,,....,???।," सिसयाते हुए चौधराईन बोली । नीचे से धक्का मारती, धका-धक लण्ड लेती, राजेश्वरी भी अब चरम-सीमा पर पहुंच चुकी थी । चूतड़ों को उछालती हुई, अपनी टांगो को चौधराईन की कमर पर कस ली और उनकी उभारों को मसलती हुई चिल्लाई- ”मार,,,,,मार ना,,,, … चौधराईन..... हाय… सीईईईई,,,, अपने घोड़े जैसे लण्ड से,,,…मार… मेरी…चूत…फ़ाड़ दे…। हाय,,, …मालकीन, मेरा भी अब झड़ेगा…पूरा लण्ड…डाल के चोद दो …मेरी चूत…। पेल दो... । चौधराइन की लण्ड चोद्द्द्द्…मेरी चूऊत में…।” यही सब बकते हुए उसने चौधराइन को अपनी बाहों में कस कर उनकी चुचीयों पर मुंह रगडने लगी । अब चौधराईन ने पूछा- "मज़ा आ रहा है राजो....? "कभी-कभी आ रहा है, जब व अन्दर टकरा रहा है !" पंडिताईन ने कहा । चौधराईन का पूरा लण्ड अन्दर जाते गर्भाशय से टकराता और बाहर दाने पर दबाव पड़ते ही राजेश्वरी की मुँह से स्स्सीईईईईई.हा....आआ निकल जाता । हर धक्के के साथ उसकी चूत से हवा भी बाहर निकलने के कारण पर ररररर की आवाज भी निकलने लगी । लगातार आधा घन्टे की चोदाई में इतना जबरदस्त मज़ा आने के बाद भी चौधराईन झड़ी नहीं । तभी चौधराईन राजेश्वरी को बेड से उतारकर बेड की साइड में रखे एक बड़े से लोहे के बक्से के सहारे आधा झुकाकर खड़ा किया । उसकी एक पैर उठाकर बेड पर रखा और उसके पीछे से उसकी टांगों के नीचे आकर पहले तो चौधराईन आठ-दस बार राजेशेवरी की चूत को चाटा......। फ़िर उसके पीछे खड़ी होकर माया देवी ने पंडिताईन की चूत में आधा लण्ड घुसेड़ कर उसकी दोनों चूचियों को पकड़ते हुये बाकी का आधा लण्ड अन्दर किया और इसी तरह पांच सात मिनट तक चोदने के बाद उन्होने पंडिताईन को और झुकाकर उसकी कमर पकड़कर सटासट सटासट चोदने लगी ।
चौधराईन की भारी उभरी चुतड हवा में उछल रहा था । जैसे ही चौधराईन की लण्ड उसकी चूत से बाहर आता..इससे पहले कि व धक्का मारकर अन्दर करती...मदहोशी में पंडिताईन ही पीछे को धक्के मारकर स्स्सीईईईई ह... ... आ.... करते हुये अन्दर लेने लगी । चौधराईन झड़ने वाली थी.... उनका एक हाथ अपने आप उसकी उभारों पर गया और पकड़कर मसलती और पीछे से चुत पर धक्का मारती.... । उसकी चूत ने पानी फेंकना शुरु कर दिया था । तभी चौधराइन ने भी हवा में जोर-जोर अपनी उभरी गांड उछाली और तेजी से राजेश्वरी की बुर में लन्ड अंदर-बाहर करने लगी । राजेश्वरी ने भी नीचे से पुरा साथ दे रही थी । इतने में चौधराइन ने एक जोरदार धक्का लगाई और पंडिताईन की बुर में जड तक लन्ड पेल कर झडने लगी । चौधराइन की लण्ड से तेज फौवारे के साथ पानी निकलना शुरु हो गया था । चरम आनंद में दोनों निढाल होकर बिस्तर पर लुढक गईं । चौधराइन के होठों राजेश्वरी के होंठ से चिपके हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था । दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे की तिल रखने की जगह भी नही थी। पसीने से लथ-पथ गहरी सांस लेते हुए। जब चौधराइन की लण्ड का पानी राजेश्वरी की चूत में गिरा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बरसों की प्यास बुझ गई हो । तपते रेगीस्तान पर चौधराइन की लण्ड बारिश कर रहा था और बहुत ज्यादा कर रहा था, आखिर उसने अपनी पंडित की धर्मपत्नी की रसीली बुर को चोद ही डाली । करीब आधे घन्टे तक दोनो महिलाएं एक दूसरे से चिपके, बेसुध हो कर वैसे ही नंगे लेटे रहे । राजेश्वरी अब चौधराइन बगल में लेटी हुई थी । चौधराइन आंखे बन्द किये टांगे फैलाये बेसुध लेटी हुई थी, । आधे घन्टे बाद जब पंडिताईन को होश आया, तो खुद को नंगी लेटी देख हडबड़ा कर उठ गई । बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। बगल में चौधराइन भी नंगी लेटी हुई थी । चौधराइन की लटकी हुई बडा लण्ड और उसका लाल सुपाड़ा, उसके मन में फिर से गुद-गुदी पैदा कर गया और हाथ बढा कर चौधराइन की मुरझे हुए लन्ड को मुठ्ठी में भर कर हिलाने लगी । लन्ड पर दबाव पडने पर चौधराइन की आंखें खुल गई । पंडिताईन को लन्ड मसलते देख चौधराइन मन ही मन बोली लो पंडित सदानन्द आज मैंने तेरे पत्नी की टाईट चुत को भी निबटा दी , देख बारिश भी हमारी चुदाई की खुशी मना रही आज से गाँव के पण्डिताईन भी मेरी लन्ड से बंधे गई । मन ही मन ऐसी ऊल जलूल बातें सोचती मुस्कुराती चौधराइन ने आहिस्ते से राजेश्वरी की हाथ से अपनी लन्ड छुडा कर बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउज को फिर से पहन लिया और राजेश्वरी की नंगी चुत के ऊपर पेटीकोट डाल दी । जैसे ही चौधराइन फिर से लेटने को हुई की राजेश्वरी अपने ऊपर रखी पेटीकोट को ठीक से पहन ली । थोड़ी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोली पर, फिर पंडिताईन धीरे से सरक कर माया देवी की ओर घुम गयी, और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे हाथ चला कर सहलाने लगी । फिर धीरे से बोली- “कैसी हो चौधराइन ,,,,, ,,,,? चौधराइन– "एक एक जोड़ दुख रहा है ।" “इधर देखो ना…।” माया देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घुम गई। राजेश्वरी उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए, धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगी । नाड़ा जहां पर बांधा जाता है, वहां पर पेटिकोट आम तौर पर थोड़ा सा फटा हुआ होता है । नाड़े से खेलते-खेलते पंडिताईन ने अपना हाथ धीरे से अन्दर सरकाकर उनकी मुरझी लन्ड जो अभी घिरे-घिरे तन रही थी हाथ फ़ेर दिया, तो चौधराइन गुदगुदी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली- “क्या करती है,,,,,? हाथ हटा…” राजेश्वरी ने हाथ वहां से हटा, कमर पर रख दी और थोड़ा और उपर सरका कर उभारों को मसलते हुए उनकी आंखो में झांकते हुए बोली- “,,,,,,मजा आया…!!!???” झेंप से चौधराइन का चेहरा लाल हो गया ... और बोली-
“मुझे तो बहुत मजा,,,,,,,आया… बता ना, तुझे कैसा लगा…?” “हाय, मालकिन ... पहली बार इतनी बडी लन्ड से चुदी हुं…” -कहते हुए, उनके होठों को हल्के से चुम लिया । माया देवी पंडिताईन की कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए उसको कमर से पकड़ कस कर भींचा । चौधराइन की खड़ी हो चुकी लण्ड, सीधा पंडिताईन की जांघो के बीच दस्तक देने लगा । पंडिताईन उनकी बाहों से छुटने का असफल प्रायास करती, पंडिताईन गरम तो थी हीं चौधराइन की लण्डअपनी दोनों माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा के मसलते हुए बोलीं – "मालकीन एक बात पूछुं आपसे.. ।" "एक नहीं सौ बात पूछ ।" "आप हमारी मालकीन हो, हमारी चौधरी साहव की धर्मपत्नी, फिर ये लंड आपकी शरीर में कै... से... क्या आप पुरूष हैं .....?" "अरे... नहीं.. रे पगली, मैं पहले भी औरत थी..आज भी हुं और आगे भी औरत ही रहुंगी । अपनी इस बदनसीबी पे रोऊं या खुशीयां मनाऊं मैं... पहले तो बहुत रोने को मन किया, फिर धीरे-धीरे सब खुशीयों में बदलने लगे । मेरी शरीर में लंड के उगने से मेरी जिस्मानी ख्वाईशें जरुर बदल गईं हैं....... फिर भी मैं तुम लोग जैसी तन और मन से पूरी तरह औरत ही हुं और अब मैं अपनी बदकिस्मती की खुशीयां मना रही हुं, बस्... किसी और दिन मैं तुझे अपनी पूरी कहानी बताऊंगी ।" कहने के साथ माया देवी पंडिताईन को आगोश में भर लिया और पागलों की तरह उसे चुमने लगीं ।
THE END
“उईईई आआ,,,,,, शाबाश फ़ाड़ दी,,,,,, ,, आह…।” करते हुए, अपने हाथों के नाखून चौधराईन की पीठ में गड़ा दिये। “बहुत,,,,, टाईट…है…तेरा,,,,छेद…” चूत के पानी में फिसलता हुआ, चौधराईन की पूरी लण्ड उसकी चूत की जड़ तक उतरता चला गया। “बहुत बड़ा…है,,,,आपकी,,,,लन्ड…उफफफ्…। मेरे,,,,,,चुची चूसते हुए,,,,,चोदो ....शाबाश ।” चौधराईन ने एक चूची को अपनी मुठ्ठी में जकड़ मसलते हुए, दूसरी चूची पर मुंह लगा कर चूसते हुए, धीरे-धीरे एक- चौथाई लण्ड खींच कर धक्के लगाती पुछी- “पेलवाती,,,, नही… थी…???” “नही,,,। किस से पेलवाती,,,,,,?” “क्यों,,,,?…पंडित…!!!।” “उसका मूड…बहुत कम… कभी-कभी ही बनता है।” “दूसरा…कोई…” ये सुनकर पंडिताईन ताव में आकर झल्लाते हुए चार-पांच तगडे धक्के नीचे से लगा दी । तगडे धक्को ने चौधराइन को पूरा हिला दिया। चूचियाँ थिरक उठीं । मोटी जांघो में दलकन पैदा हो गई । लन्ड में थोड़ा दर्द हुआ, मगर मजा भी आया, क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और लण्ड गच-गच फिसलता हुआ अन्दर- बाहर हुआ था । अपने पैरों को चौधराईन की उभरी हुई भारी चुतडों के उपर कमर से लपेट उनको भींचती सिसयाती हुई बोली- “उफफफ्,,,,,,,, सीईई दुखा दिया आरम,,....।” चौधराईन कुछ नही बोली । लण्ड अब चुंकी आराम से फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था, इसलिये व पंडिताईन कि टाईट, गद्देदार, रसिली चूत का रस अपने लण्ड की पाईप से चूसते हुए, गचा-गच धक्केलगा रही थी । राजेश्वरी को भी अब पूरा मजा आ रहा था । चौधराईन की तग़डी लण्ड सीधा उसकी चूत के अखिरी किनारे तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था । धीरे-धीरे चूतड़ों उंचकाते हुए सिसयाती हुई बोली- “बोलोना,,,,,तो, जो बोल…रही…” “मैं तो…बोल रही थी,,,,,, की अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही… करवाया …नही तो,,,,,,,,मुझे…तेरी टाईट…छेद की जगह…ढीला…छेद में लन्ड डालनी पडती ।”- राजेश्वरी की चुत पर धक्के तेज करती हुई चौधराईन बोली। “हाय…आपको,,,,छेद की…पड़ी है…इस बात की नही, की मैं दूसरे आदमी .....।" “हाय,,,, अब…आदमीयों को छोड़…अब तो बस तेरी… ही…सीईईइ.....उफफ्… बहुत मजेदार छेद है…”, गपा-गप लण्ड पेलता हुई चौधराईन सिसयाते हुई बोली । अब चौधराईन की लण्ड राजेश्वरी की बुर की दिवारों को बुरी तरह से कुचलता हुआ, अन्दर घुसते समय चूत के धधकते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था, और फिर जब बाहर निकलता था तो चूत के मोटे होठ और पुत्तियां अपने आप करीब आ छेद को फिर से छोटा बना देती थी । मोटी जाँघों और बड़े होठों वाली, फ़ूली पावरोटी सी गुदाज चूत होने का यही फायदा था । हंमेशा गद्देदार और टाईट रहती थी, ये बात चौधराईन को भली-भांती मालुम थी और खास इसी वजह से ही तो उनकी नजर पंडिताईन की भारी गठीले वदन पर थी । राजेश्वरी ने भी चौधराईन की उरोजों को मसलते हुए निपलों को मुंह में भर चुसने लगी । राजेश्वरी के रसीले होठों को चूसते हुए, नीचे के होठों में लण्ड धंसाते हुए चौधराईन तेजी से अपनी उभरी चूतड़ों उछाल कर उसके ऊपर कुद रही थी । “हाय,,,मालकीन... आपकी लन्ड भी…!! बहुत मजेदार…है, मैंने आजतक इतना लम्बा..और मोटा लन्ड …सीसीसीईईईईईईई…हाय डालती रहो…। ऐसे ही…उफफ्…पहले दर्द किया,,,,,मगर…अब…। आराम से…। हाय…। अब फ़ाड़ दो…। सीईईईई…पूरा डाल… कर…। हायमादर,,,,,चोद…बहुत पानी फेंक रही… है मेरी …चु…त...।” नीचे से चूतड़ों उछालती, चौधराईन की चौडी उभरी गांड को दोनो हाथों से पकड़ अपनी चूत के ऊपर दबाती, गप गप लण्ड खा रही थी राजेश्वरी । कमरे में बारिश की आवाज के साथ पंडिपाईन की चूत की पानी में फच-फच करते हुए चौधराईन की लण्ड के अन्दर-बाहर होने की आवाज भी गुंज रही थी । इस सुहाने मौसम में खलिहान के विराने में दोनो चोदाई का मजा लूट रहे थे ।
कहाँ चौधराईन अपनी गुप्त रहस्य पकड़े जाने पर अफसोस मना रही थी वहीं अभी खुशी से अपनी भारी चूतड़ों कुदाते हुए, अपनी पंडिताईन की टाईट पावरोटी जैसी फुली चूत में लण्ड पेल रही थी । उधर पंडिताईन जो सोच रही थी की मालकीन आखिर मर्द बनी कैसी ! ईतना ब़ा लन्ड ... अब नंगी अपने चौधराईन के नीचे लेट कर, उनकी तीन इंच मोटे और दस इंच लम्बे लण्ड को कच-कच खाते हुए खुशियां मना रही थी । “हाय,,,, बहुत…। मजेदार है, तेरी चुची..... तेरी ...छेद…उफफ्…हाय,,,, अब तो…हाय,,,, मजा आ रहा है, इस चौधराईन की लन्ड बुर में घुसवाने में ???…। सीएएएएएए…। हाय, पहले ही बता दिया होता …तेरी सिकुड़ी चूत फ़ाड़ के भोसड़ा बना देती …सीईईईई ले अपनी मालकीन की…। लण्ड.... हाय…बहुत मजा,, हाय,,…तूने तो खेल-खेल कर इतना… तड़पा दिया है…अब बरदाश्त नहीं हो रहा…मेरी तो निकल जायेगी ……सीईईईईई… तेरी … चु…तमें,,,....,???।," सिसयाते हुए चौधराईन बोली । नीचे से धक्का मारती, धका-धक लण्ड लेती, राजेश्वरी भी अब चरम-सीमा पर पहुंच चुकी थी । चूतड़ों को उछालती हुई, अपनी टांगो को चौधराईन की कमर पर कस ली और उनकी उभारों को मसलती हुई चिल्लाई- ”मार,,,,,मार ना,,,, … चौधराईन..... हाय… सीईईईई,,,, अपने घोड़े जैसे लण्ड से,,,…मार… मेरी…चूत…फ़ाड़ दे…। हाय,,, …मालकीन, मेरा भी अब झड़ेगा…पूरा लण्ड…डाल के चोद दो …मेरी चूत…। पेल दो... । चौधराइन की लण्ड चोद्द्द्द्…मेरी चूऊत में…।” यही सब बकते हुए उसने चौधराइन को अपनी बाहों में कस कर उनकी चुचीयों पर मुंह रगडने लगी । अब चौधराईन ने पूछा- "मज़ा आ रहा है राजो....? "कभी-कभी आ रहा है, जब व अन्दर टकरा रहा है !" पंडिताईन ने कहा । चौधराईन का पूरा लण्ड अन्दर जाते गर्भाशय से टकराता और बाहर दाने पर दबाव पड़ते ही राजेश्वरी की मुँह से स्स्सीईईईईई.हा....आआ निकल जाता । हर धक्के के साथ उसकी चूत से हवा भी बाहर निकलने के कारण पर ररररर की आवाज भी निकलने लगी । लगातार आधा घन्टे की चोदाई में इतना जबरदस्त मज़ा आने के बाद भी चौधराईन झड़ी नहीं । तभी चौधराईन राजेश्वरी को बेड से उतारकर बेड की साइड में रखे एक बड़े से लोहे के बक्से के सहारे आधा झुकाकर खड़ा किया । उसकी एक पैर उठाकर बेड पर रखा और उसके पीछे से उसकी टांगों के नीचे आकर पहले तो चौधराईन आठ-दस बार राजेशेवरी की चूत को चाटा......। फ़िर उसके पीछे खड़ी होकर माया देवी ने पंडिताईन की चूत में आधा लण्ड घुसेड़ कर उसकी दोनों चूचियों को पकड़ते हुये बाकी का आधा लण्ड अन्दर किया और इसी तरह पांच सात मिनट तक चोदने के बाद उन्होने पंडिताईन को और झुकाकर उसकी कमर पकड़कर सटासट सटासट चोदने लगी ।
चौधराईन की भारी उभरी चुतड हवा में उछल रहा था । जैसे ही चौधराईन की लण्ड उसकी चूत से बाहर आता..इससे पहले कि व धक्का मारकर अन्दर करती...मदहोशी में पंडिताईन ही पीछे को धक्के मारकर स्स्सीईईईई ह... ... आ.... करते हुये अन्दर लेने लगी । चौधराईन झड़ने वाली थी.... उनका एक हाथ अपने आप उसकी उभारों पर गया और पकड़कर मसलती और पीछे से चुत पर धक्का मारती.... । उसकी चूत ने पानी फेंकना शुरु कर दिया था । तभी चौधराइन ने भी हवा में जोर-जोर अपनी उभरी गांड उछाली और तेजी से राजेश्वरी की बुर में लन्ड अंदर-बाहर करने लगी । राजेश्वरी ने भी नीचे से पुरा साथ दे रही थी । इतने में चौधराइन ने एक जोरदार धक्का लगाई और पंडिताईन की बुर में जड तक लन्ड पेल कर झडने लगी । चौधराइन की लण्ड से तेज फौवारे के साथ पानी निकलना शुरु हो गया था । चरम आनंद में दोनों निढाल होकर बिस्तर पर लुढक गईं । चौधराइन के होठों राजेश्वरी के होंठ से चिपके हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था । दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे की तिल रखने की जगह भी नही थी। पसीने से लथ-पथ गहरी सांस लेते हुए। जब चौधराइन की लण्ड का पानी राजेश्वरी की चूत में गिरा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बरसों की प्यास बुझ गई हो । तपते रेगीस्तान पर चौधराइन की लण्ड बारिश कर रहा था और बहुत ज्यादा कर रहा था, आखिर उसने अपनी पंडित की धर्मपत्नी की रसीली बुर को चोद ही डाली । करीब आधे घन्टे तक दोनो महिलाएं एक दूसरे से चिपके, बेसुध हो कर वैसे ही नंगे लेटे रहे । राजेश्वरी अब चौधराइन बगल में लेटी हुई थी । चौधराइन आंखे बन्द किये टांगे फैलाये बेसुध लेटी हुई थी, । आधे घन्टे बाद जब पंडिताईन को होश आया, तो खुद को नंगी लेटी देख हडबड़ा कर उठ गई । बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। बगल में चौधराइन भी नंगी लेटी हुई थी । चौधराइन की लटकी हुई बडा लण्ड और उसका लाल सुपाड़ा, उसके मन में फिर से गुद-गुदी पैदा कर गया और हाथ बढा कर चौधराइन की मुरझे हुए लन्ड को मुठ्ठी में भर कर हिलाने लगी । लन्ड पर दबाव पडने पर चौधराइन की आंखें खुल गई । पंडिताईन को लन्ड मसलते देख चौधराइन मन ही मन बोली लो पंडित सदानन्द आज मैंने तेरे पत्नी की टाईट चुत को भी निबटा दी , देख बारिश भी हमारी चुदाई की खुशी मना रही आज से गाँव के पण्डिताईन भी मेरी लन्ड से बंधे गई । मन ही मन ऐसी ऊल जलूल बातें सोचती मुस्कुराती चौधराइन ने आहिस्ते से राजेश्वरी की हाथ से अपनी लन्ड छुडा कर बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउज को फिर से पहन लिया और राजेश्वरी की नंगी चुत के ऊपर पेटीकोट डाल दी । जैसे ही चौधराइन फिर से लेटने को हुई की राजेश्वरी अपने ऊपर रखी पेटीकोट को ठीक से पहन ली । थोड़ी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोली पर, फिर पंडिताईन धीरे से सरक कर माया देवी की ओर घुम गयी, और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे हाथ चला कर सहलाने लगी । फिर धीरे से बोली- “कैसी हो चौधराइन ,,,,, ,,,,? चौधराइन– "एक एक जोड़ दुख रहा है ।" “इधर देखो ना…।” माया देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घुम गई। राजेश्वरी उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए, धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगी । नाड़ा जहां पर बांधा जाता है, वहां पर पेटिकोट आम तौर पर थोड़ा सा फटा हुआ होता है । नाड़े से खेलते-खेलते पंडिताईन ने अपना हाथ धीरे से अन्दर सरकाकर उनकी मुरझी लन्ड जो अभी घिरे-घिरे तन रही थी हाथ फ़ेर दिया, तो चौधराइन गुदगुदी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली- “क्या करती है,,,,,? हाथ हटा…” राजेश्वरी ने हाथ वहां से हटा, कमर पर रख दी और थोड़ा और उपर सरका कर उभारों को मसलते हुए उनकी आंखो में झांकते हुए बोली- “,,,,,,मजा आया…!!!???” झेंप से चौधराइन का चेहरा लाल हो गया ... और बोली-
“मुझे तो बहुत मजा,,,,,,,आया… बता ना, तुझे कैसा लगा…?” “हाय, मालकिन ... पहली बार इतनी बडी लन्ड से चुदी हुं…” -कहते हुए, उनके होठों को हल्के से चुम लिया । माया देवी पंडिताईन की कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए उसको कमर से पकड़ कस कर भींचा । चौधराइन की खड़ी हो चुकी लण्ड, सीधा पंडिताईन की जांघो के बीच दस्तक देने लगा । पंडिताईन उनकी बाहों से छुटने का असफल प्रायास करती, पंडिताईन गरम तो थी हीं चौधराइन की लण्डअपनी दोनों माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा के मसलते हुए बोलीं – "मालकीन एक बात पूछुं आपसे.. ।" "एक नहीं सौ बात पूछ ।" "आप हमारी मालकीन हो, हमारी चौधरी साहव की धर्मपत्नी, फिर ये लंड आपकी शरीर में कै... से... क्या आप पुरूष हैं .....?" "अरे... नहीं.. रे पगली, मैं पहले भी औरत थी..आज भी हुं और आगे भी औरत ही रहुंगी । अपनी इस बदनसीबी पे रोऊं या खुशीयां मनाऊं मैं... पहले तो बहुत रोने को मन किया, फिर धीरे-धीरे सब खुशीयों में बदलने लगे । मेरी शरीर में लंड के उगने से मेरी जिस्मानी ख्वाईशें जरुर बदल गईं हैं....... फिर भी मैं तुम लोग जैसी तन और मन से पूरी तरह औरत ही हुं और अब मैं अपनी बदकिस्मती की खुशीयां मना रही हुं, बस्... किसी और दिन मैं तुझे अपनी पूरी कहानी बताऊंगी ।" कहने के साथ माया देवी पंडिताईन को आगोश में भर लिया और पागलों की तरह उसे चुमने लगीं ।
THE END
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