दोनों बगीचे पर पहुंच कर खलिहान या मकान जो भी कहिये उसका दरवाजा ही खोला था, दोनों अंदर दाखिल हुए । अन्धेरा तो बहुत ज्यादा था, मगर फिर भी किसी बिजली के खम्भे की रोशनी बगीचे में आ रही थी। चौधराइन ने देख लिया बाहर गेट पर दो औरतें टहल रही थी और चौधराइन माया देवी की आवाज गूँजी, “कौन घुस रहा है बगीचे में,,,,,…?।” पंडिताईन ने भी पलट कर देखा, इस से पहले की कुछ बोल पाती, कि चौधराइन की कड़कती आवाज इस बार पूरे बगीचे में गुंज गई, “कौन है, रे ?!!!…ठहर. अभी बताती हूँ ।" इसके साथ ही माया देवी ने दौड़ लगा दी । “ साली, आम चोर कुतिया,,,,,! ठहर वहीं पर…!।” भागते-भागते एक डन्डा भी हाथ में उठा लिया था । दोनों औरतें बेतहाशा भागी । पीछे चौधराइन हाथ में डन्डा लिये गालियों की बौछार कर रही थी । दोनों जब बाउन्ड्री के गेट के बाहर भाग गई तो माया देवी रुक गई । गेट को ठीक से बन्द किया और वापस लौटी । पंडिताईन खलिहान के बाहर ही खड़ी थी । माया देवी की सांसे फुल रही थी । डन्डे को एक तरफ फेंक कर, अन्दर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लम्बी-लम्बी सांसे लेते हुए बोली,- “साली हरामजादियाँ,,,,,, देखो तो कितनी हिम्मत है !?? शाम होते ही आ गई चोरी करने !,,,,,अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की चूतड़ों में डन्डा पेल देती…हरामखोर साली, तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नहीं होती, जितनी पहले होती थी…। मादरचोदियां, अपनी चूत में आम भर-भर के ले जाती है…रण्डियों का चेहरा नहीं देख पाई…।” पंडिताईन माया देवी के मुंह से ऐसी मोटी- मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गयी । हालांकि व जानती थी कि चौधराइन कड़क स्वभाव की है, और नौकर चाकरो को गरि याती रहती है । मगर ऐसी गन्दी-गन्दी गालियां उसके मुंह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोली- “अरे मालकीन, छोड़ो ना आप भी… भगा तो दिया…अब मैं रोज इसी समय आया करूँगी ना , देखना इस बार अच्छी कमाई…।" “ना ना,,,,,ऐसे इनकी आदत नहीं छुटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची ना डालोगे बेटा, तब तक ये सब भोसड़चोदीयां ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी…। माल किसी का, खा कोई और रहा है…।” पंडिताईन ने कभी चौधराइन को ऐसे गालियां देते नहीं सुना था । बोल तो कुछ सकती नही थी, मगर जब गन्दी-गन्दी बातजब माया देवी ने दो-चार और मोटी गालियां निकाली तो उनके इस छिनालपन को देख पंडिताईन की मन में वासना जाग उठी ।
फिर इस घबराहट को छुपाने के लिये जल्दी से बिस्तर पर चौधराइन के सामने बैठ गयी । माया देवी की सांसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी, उसने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया, और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा ऊपर तक खींच कर बैठ गई, और खिड़की के तरफ मुंह घुमा कर बोली, “लगता है, आज बारिश होगी ।" पंडिताईन कुछ नहीं बोली उसकी नजरे तो माया देवी की गोरी- गठीली पिन्डलियों का मुआयना कर रही थी । घुमती नजरे जांघो तक पहुंच गई और व उसी में खोयी रहती, अगर अचानक माया देवी ना बोल पड़ती, “राजेश्वरी, आम खाओगी …!!?” पंडिताईन ने चौंक कर हड़बडाते हुए तुरंत बोली- "आम,,,,? कहाँ है, आम…? अभी कहाँ से…?” “आम के बगीचे में बैठ कर…आम नहीं दिख रहे…!!!! बावला हो रही है क्या?” कह कर मुस्कुराई…...। “पर, रात में,,,,,,आम !?”, "चल बाहर चलते हैं।”, कहती हुई, पंडिताईन को एक तरफ धकेलती बिस्तर से उतरने लगी । “क्या मालकीन आपको भी इतनी रात में क्या-क्या सूझ रहा है… इतनी रात में आम कहाँ दिखोगे !" “ये टार्च है ना,,,,,,बारिश आने वाली है…नहीं तोड़ेंगे तो जितने भी पके हुए आम है, गिर कर खराब हो जायेंगे…।” मजबुरन पंडिताईन भी अपनी साडी खोल केवल पेटीकोट में टार्च उठा कर बाहर की ओर चल दी और उसके पिछे चौधराईन । चौधराईन की ध्यान बराबर उसकी मटकती, गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतड़ों की ओर चली गयी । एकदम गदराये-गठीले चूतड़, पेटिकोट के ऊपर से देखने से लग रहा था की हाथ लगा कर अगर पकड़े, तो मोटे मांसल चूतड़ों को रगड़ने का मजा आ जायेगा । ऐसे ठोस चूतड़ की, उसके दोनों भागों को अलग करने के लिये भी मेहनत करनी पड़ेगी । फिर उसके बीच चूतड़ों के बीच की नाली बस मजा आ जायेगा । पेटीकोट के अन्दर चौधराईन की लण्ड फनफाना रहा था । पंडिताईन की हिलते चूतड़ों को देखती हुई, पीछे चलते हुए आम के पेड़ों के बीच पहुंच गयी । वहां माया देवी फ्लेश-लाईट (टार्च) जला कर, ऊपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ों पर रोशनी डाल रही थी । “इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक-आध ही पके हुए दिख रहे…।” “इस तरफ टार्च दिखाओ तो मालकीन इस पेड़ पर …पके हुए आम…।” “कहाँ है,,,? इस पेड़ पर भी नही है, पके हुए…तु क्या करती थी, यहां पर…?? तुझे तो ये भी नहीं पता, किस पेड़ पर पके हुए आम है…???” पंडिताईन ने माया देवी की ओर देखते हुए कहा- “पता तो है, मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नहीं दोगी…!।" “क्यों नही तोड़ने दूँगी,,?…तु बता तो सही, मैं खुद तोड़ कर खिलाऊँगी..।” -फिर एक पेड़ के पास रुक गई । “हां,,,!! देख, ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमों से…। चल ले, टार्च पकड़ के दिखा, मैं जरा आम तोड़ती हूँ…।” - कहते हुए माया देवी ने पंडिताईन को टार्च पकड़ा दिया । पंडिताईन ने उसे रोकते हुए कहा,- “क्या करती हैं…?, कहीं गिर गई तो..…? आप रहने दो मैं तोड़ देती हुं…।” “चल बड़ी आयी…आम तोड़ने वाली, मैं गांव में ही बड़ी हुई हुं…
जब मैं छोटी थी तो अपनी सहेलियों में मुझसे ज्यादा तेज कोई नही था, पेड़ पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हुं…।" “अरे, तब की बात और थी…” पर पंडिताईन की बाते उसके मुंह में ही रहगई, और माया देवी ने अपने पेटिकोट को एकदम जाघों के ऊपर कर अपनी कमर में खोस लिया, और पेड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया । पंडिताईन ने भी टार्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी । जैसे ही चौधराइन एक पैर उपर के डाल पर रखा उनकी पेटीकोट अपने-आप कमर तक सरक गया और माया देवी की भारी गांड साफ दिखाई देने लगा । थोड़ी ही देर में काफी ऊपर चढ़ गई, और पेर की दो डालो के ऊपर पैर जमा कर खड़ी हो गई, और टार्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी । तभी टार्च फिसल कर पंडिताईन की हाथों से नीचे गिर गयी । “ अरे,,,,, क्या करती है तु …? ठीक से टार्च भी नहीं दिखा सकती क्या ?”- पंडिताईन ने जल्दी से नीचे झुक कर टार्चउठायी और फिर ऊपर की …। “ ठीक से दिखा ,,, इधर की तरफ …” टार्च की रोशनी चौधराइन जहां आम तोड़ रही थी, वहां ले जाने के क्रम में ही रोशनी माया देवी के पैरो के पास पड़ी तो पंडिताईन के होश उड़ गये । माया देवी ने अपने दोनो पैर दो डालो पर टिका के रखे हुए थे । उनकी पेटिकोट दो भागो में बट गया था । और टार्च की रोशनी सीधी उनकी दोनों पैरो के बीच के अन्धेरे को चीरती हुई पेटिकोट के अन्दर के माल को रोशनी से जगमगा दिया । पेटिकोट के अन्दर के नजारे ने मदन की तो आंखो को चौंधिया दिया । टार्च की रोशनी में पेटिकोट के अन्दर कैद, चमचमाती मखमली चौड़ी-चकली जांघो के बीच एक मर्द जैसा ढाई इंच मोटा लण्ड लटका हुआ था । पंडिताईन की तो होश ही उड गया चौघराइन की लंड देख कर । उसने पहली बार किसी औरत के बदन में लंड देख रही थी । पर ये कैसा हो सकता है, चौधराईन तो बेहद खुबसुरत महिला थीं । तो फिर उनकी शरीर में चुत की वजाय ये मर्दाना लंड कैसे ? चौधराईन की ये अनोखी रुप देख कर पंडिताईन का सर चकराने लगा था । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... कि महिलाओं की भी लंड होती हैं ......????? फिर पंडिताईन ने उनकी मखमली जांघों में रोशनी जमाए रखा । चौधराइन की लंड अभी पूरा खड़ा नही था ।पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने चौधराइन की लंड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था । रोशनी पूरी ऊपर तक चौधराइन की काली काली झाँटों को भी दिखा रही थी । टार्च की रोशनी में कन्दली के खम्भे जैसी चिकनी मोटी जाघों के साथ-साथ उनकी लंड और झांटों को देख लगा की उसकी चुत पानी फेंक देगी, उसकी गला सुख गया और हाथ-पैर कांपने लगे । तभी माया देवी की आवाज सुनाई दी, “ अरे, कहाँ दिखा रहा है ? यहां ऊपर दिखा ना…!! ।" हकलाते हुए पंडिताईन बोली- “ हां,,,! हां,,, अभी दिखाती … वो टार्च गिर गयी थी।” फिर टार्च की रोशनी चौधराइन के जांघों पर फोकस कर दी । चौधराइन ने दो आम तोड़ लिये फिर बोली- “ ले, केच कर तो जरा …” और नीचे की तरफ फेंके , पंडिताईन ने जल्दी से टार्च को कांख में दबा , दोनो आम बारी-बारी से केच कर लिये और एक तरफ रख कर , फिर से टार्च ऊपर की तरफ दिखाने लगी । और इस बार सीधा उनकी दोनो टांगो के बीच में रोशनी फेंकी । इतनी देर में माया देवी की टांगे कुछ और फैल गई थी । पेटिकोट अब पुरा ऊपर उठ गया था और उनकी लंड और बडे-बडे अंडकोष ज्यादा साफ दिख रही थी । नीचे से चौधराइन की लंड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी । पंडिताईन की ये भ्रम थी या सच्चाई पर माया देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा , जैसे उनकी लंड के लाल सुपाडी ने हल्का सा अपना मुंह खोला था ।
asli maja abhi baki hai dosto ! !
फिर इस घबराहट को छुपाने के लिये जल्दी से बिस्तर पर चौधराइन के सामने बैठ गयी । माया देवी की सांसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी, उसने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया, और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा ऊपर तक खींच कर बैठ गई, और खिड़की के तरफ मुंह घुमा कर बोली, “लगता है, आज बारिश होगी ।" पंडिताईन कुछ नहीं बोली उसकी नजरे तो माया देवी की गोरी- गठीली पिन्डलियों का मुआयना कर रही थी । घुमती नजरे जांघो तक पहुंच गई और व उसी में खोयी रहती, अगर अचानक माया देवी ना बोल पड़ती, “राजेश्वरी, आम खाओगी …!!?” पंडिताईन ने चौंक कर हड़बडाते हुए तुरंत बोली- "आम,,,,? कहाँ है, आम…? अभी कहाँ से…?” “आम के बगीचे में बैठ कर…आम नहीं दिख रहे…!!!! बावला हो रही है क्या?” कह कर मुस्कुराई…...। “पर, रात में,,,,,,आम !?”, "चल बाहर चलते हैं।”, कहती हुई, पंडिताईन को एक तरफ धकेलती बिस्तर से उतरने लगी । “क्या मालकीन आपको भी इतनी रात में क्या-क्या सूझ रहा है… इतनी रात में आम कहाँ दिखोगे !" “ये टार्च है ना,,,,,,बारिश आने वाली है…नहीं तोड़ेंगे तो जितने भी पके हुए आम है, गिर कर खराब हो जायेंगे…।” मजबुरन पंडिताईन भी अपनी साडी खोल केवल पेटीकोट में टार्च उठा कर बाहर की ओर चल दी और उसके पिछे चौधराईन । चौधराईन की ध्यान बराबर उसकी मटकती, गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतड़ों की ओर चली गयी । एकदम गदराये-गठीले चूतड़, पेटिकोट के ऊपर से देखने से लग रहा था की हाथ लगा कर अगर पकड़े, तो मोटे मांसल चूतड़ों को रगड़ने का मजा आ जायेगा । ऐसे ठोस चूतड़ की, उसके दोनों भागों को अलग करने के लिये भी मेहनत करनी पड़ेगी । फिर उसके बीच चूतड़ों के बीच की नाली बस मजा आ जायेगा । पेटीकोट के अन्दर चौधराईन की लण्ड फनफाना रहा था । पंडिताईन की हिलते चूतड़ों को देखती हुई, पीछे चलते हुए आम के पेड़ों के बीच पहुंच गयी । वहां माया देवी फ्लेश-लाईट (टार्च) जला कर, ऊपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ों पर रोशनी डाल रही थी । “इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक-आध ही पके हुए दिख रहे…।” “इस तरफ टार्च दिखाओ तो मालकीन इस पेड़ पर …पके हुए आम…।” “कहाँ है,,,? इस पेड़ पर भी नही है, पके हुए…तु क्या करती थी, यहां पर…?? तुझे तो ये भी नहीं पता, किस पेड़ पर पके हुए आम है…???” पंडिताईन ने माया देवी की ओर देखते हुए कहा- “पता तो है, मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नहीं दोगी…!।" “क्यों नही तोड़ने दूँगी,,?…तु बता तो सही, मैं खुद तोड़ कर खिलाऊँगी..।” -फिर एक पेड़ के पास रुक गई । “हां,,,!! देख, ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमों से…। चल ले, टार्च पकड़ के दिखा, मैं जरा आम तोड़ती हूँ…।” - कहते हुए माया देवी ने पंडिताईन को टार्च पकड़ा दिया । पंडिताईन ने उसे रोकते हुए कहा,- “क्या करती हैं…?, कहीं गिर गई तो..…? आप रहने दो मैं तोड़ देती हुं…।” “चल बड़ी आयी…आम तोड़ने वाली, मैं गांव में ही बड़ी हुई हुं…
जब मैं छोटी थी तो अपनी सहेलियों में मुझसे ज्यादा तेज कोई नही था, पेड़ पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हुं…।" “अरे, तब की बात और थी…” पर पंडिताईन की बाते उसके मुंह में ही रहगई, और माया देवी ने अपने पेटिकोट को एकदम जाघों के ऊपर कर अपनी कमर में खोस लिया, और पेड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया । पंडिताईन ने भी टार्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी । जैसे ही चौधराइन एक पैर उपर के डाल पर रखा उनकी पेटीकोट अपने-आप कमर तक सरक गया और माया देवी की भारी गांड साफ दिखाई देने लगा । थोड़ी ही देर में काफी ऊपर चढ़ गई, और पेर की दो डालो के ऊपर पैर जमा कर खड़ी हो गई, और टार्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी । तभी टार्च फिसल कर पंडिताईन की हाथों से नीचे गिर गयी । “ अरे,,,,, क्या करती है तु …? ठीक से टार्च भी नहीं दिखा सकती क्या ?”- पंडिताईन ने जल्दी से नीचे झुक कर टार्चउठायी और फिर ऊपर की …। “ ठीक से दिखा ,,, इधर की तरफ …” टार्च की रोशनी चौधराइन जहां आम तोड़ रही थी, वहां ले जाने के क्रम में ही रोशनी माया देवी के पैरो के पास पड़ी तो पंडिताईन के होश उड़ गये । माया देवी ने अपने दोनो पैर दो डालो पर टिका के रखे हुए थे । उनकी पेटिकोट दो भागो में बट गया था । और टार्च की रोशनी सीधी उनकी दोनों पैरो के बीच के अन्धेरे को चीरती हुई पेटिकोट के अन्दर के माल को रोशनी से जगमगा दिया । पेटिकोट के अन्दर के नजारे ने मदन की तो आंखो को चौंधिया दिया । टार्च की रोशनी में पेटिकोट के अन्दर कैद, चमचमाती मखमली चौड़ी-चकली जांघो के बीच एक मर्द जैसा ढाई इंच मोटा लण्ड लटका हुआ था । पंडिताईन की तो होश ही उड गया चौघराइन की लंड देख कर । उसने पहली बार किसी औरत के बदन में लंड देख रही थी । पर ये कैसा हो सकता है, चौधराईन तो बेहद खुबसुरत महिला थीं । तो फिर उनकी शरीर में चुत की वजाय ये मर्दाना लंड कैसे ? चौधराईन की ये अनोखी रुप देख कर पंडिताईन का सर चकराने लगा था । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... कि महिलाओं की भी लंड होती हैं ......????? फिर पंडिताईन ने उनकी मखमली जांघों में रोशनी जमाए रखा । चौधराइन की लंड अभी पूरा खड़ा नही था ।पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने चौधराइन की लंड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था । रोशनी पूरी ऊपर तक चौधराइन की काली काली झाँटों को भी दिखा रही थी । टार्च की रोशनी में कन्दली के खम्भे जैसी चिकनी मोटी जाघों के साथ-साथ उनकी लंड और झांटों को देख लगा की उसकी चुत पानी फेंक देगी, उसकी गला सुख गया और हाथ-पैर कांपने लगे । तभी माया देवी की आवाज सुनाई दी, “ अरे, कहाँ दिखा रहा है ? यहां ऊपर दिखा ना…!! ।" हकलाते हुए पंडिताईन बोली- “ हां,,,! हां,,, अभी दिखाती … वो टार्च गिर गयी थी।” फिर टार्च की रोशनी चौधराइन के जांघों पर फोकस कर दी । चौधराइन ने दो आम तोड़ लिये फिर बोली- “ ले, केच कर तो जरा …” और नीचे की तरफ फेंके , पंडिताईन ने जल्दी से टार्च को कांख में दबा , दोनो आम बारी-बारी से केच कर लिये और एक तरफ रख कर , फिर से टार्च ऊपर की तरफ दिखाने लगी । और इस बार सीधा उनकी दोनो टांगो के बीच में रोशनी फेंकी । इतनी देर में माया देवी की टांगे कुछ और फैल गई थी । पेटिकोट अब पुरा ऊपर उठ गया था और उनकी लंड और बडे-बडे अंडकोष ज्यादा साफ दिख रही थी । नीचे से चौधराइन की लंड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी । पंडिताईन की ये भ्रम थी या सच्चाई पर माया देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा , जैसे उनकी लंड के लाल सुपाडी ने हल्का सा अपना मुंह खोला था ।
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